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पर्यावरण

पर्यावरण की मुख्य समस्या एवं संरक्षण के उपाय:-

पर्यावरण को सुधारने के लिये सरकार भरसक प्रयास कर रही है क्योंकि पर्यावरण को सुधारने की अति आवश्यकता है। वैज्ञानिक दृष्टि से प्रत्येक सरकार इस ओर विशेष ध्यान देती है।  जनपद गाजियाबाद में दिल्ली राजधानी सीमा में लगे हुए क्षेत्र में 600 एकड भूमि पर साईंधाम नाम से वाटिका का विकास किया जा रहा है जिसे पर्यटन एवं पर्यावरण के उददेश्य से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जनपद गाजियाबाद में पर्यावरण का एक कार्यालय भी कार्यरत है। राज्य सरकार द्वारा पर्यटन एवं पर्यावरण हेतु जिला योजना के अंर्तगत प्रत्येक वर्ष धनराशि का प्राविधान किया जाता है। जनपद में बढते हुए उद्योगों, दिल्ली के निकट होने तथा निरन्तर बढती हुयी आबादी के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढ रहा है। मोटर साईकिल स्कूटर, कार एवं अन्य वाहनो में गुणोत्तर वृद्वि हुई है। जिससे वायु प्रदूषण बढ रहा है। प्रदूषण की समस्या को कम करने हेतु यह आवश्यक है कि अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए। वृक्षारोपण हेतु सीमित स्थान होने के कारण यह आवश्यक है कि जनसाधारण में यह चेतना जागृत हो कि वह अपने आवास के सामने औद्योगिक परिसरो में कोई भी स्थान खाली न छोडे तथा वहां पर वृक्ष रोपित करें।
पर्यावरण को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं।

  1. प्राकृतिक पर्यावरणः

    – इसमें हवा , पानी, भूमि, पर्वत, वृक्ष, नदियाॅ, वनस्पतियाॅ एवं जीव जन्तु आदि सम्मिलित हैं।

  2. मानव निर्मित पर्यावरणः

    -इसमें शहर विभिन्न औद्योगिक एवं अन्य मानव निर्मित प्रतिष्ठिान, भवन, सडकें, बांध, नहरें, यातायात, उद्योग आदि सम्मिलित हैं।

  3. सामाजिक पर्यावरणः

    -आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व्यवस्था एवं उनका मानव पर प्रभाव जैसे जनसंख्या वृद्धि, रोजगार, वाणिज्य संस्कृति आदि सम्मिलित हैं।

पर्यावरण संरक्षण के उपायः-

पर्यावरण का संरक्षण प्रदूषण को कम करके किया जा सकता है। इसलिये विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को विभिन्न तरीकों से कम किया जाता है।

  • उद्योगों के चारों तरफ, घनी बस्तियों, सडकों के किनारे, खाली बन्जर भूमि, खेतों की मेड एवं सार्वजनिक स्थानों पर वृक्ष लगायें तथा वनों का विनाश रोकें।
  • सभी जीव जन्तुओं की सुरक्षा और संरक्षण को बढावा दें।
  • स्वस्थ एवं सुखी जीवन के लिये जनसंख्या पर नियंत्रण रखें।
  • उद्योगों आदि से निकलने वाले प्रदूषित जल/उत्सर्जन को निर्धारित मानकों के अनुरूप नदी, नाले, भूमि/वायुमंडल आदि में निस्तारण/उत्सर्जित करें।
  • नये उद्योगों की स्थापना, बस्तियों के निर्माण एवं विकास कार्यों के पूर्व भी पर्यावरण पहलुओं का समावेश किया जाये।
  • नदी एवं अन्य जल स्रोतों में बिना जले एवं अधजले शवों को प्रवाहित न किया जाये इससे प्रदूषण बढता है। इसके लिये विद्युत इम्प्रूव्ड शवदाह गृह का उपयोग करें।
  • कुओं पर जगत अवश्य बनायें तथा समय-समय पर कुओं में लाल दवा या क्लोरीन टिकिया डालकर पानी को रोगाणु रहित करने के पश्चात प्रयोग करें।
  • स्वच्छ प्रोद्यौगिकी को अपनाकर उद्योगों व अन्य स्रोतों से जनित कूडे कचरे व फ्लाई ऐश का पुनः प्रयोग करके बायोगैस, ऊर्जा, खाद, बिजली, भवन निर्माण सामग्री (ईंटें, सीमेन्ट, टाइलें, प्लास्टर बोर्ड आदि) व अन्य उत्पादों के निर्माण में करें।
  • कूडे-करकट को इधर-उधर न फेंककर इसका निस्तारण समुचित निर्धारित स्थल पर ही करें।
  • परिवहन चालक अपने वाहनों का रखरखाव उचित प्रकार से करें तथा समय-समय पर वाहनों के कारबोरेटर एवं उत्सर्जन की जांच कराते रहें। जिससे उत्सर्जित धुऐं को नियंत्रित किया जा सके।
  • तेज ध्वनि (शोर) से मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पडता है अतः स्वेच्छा से कम से कम शोर उत्पन्न कर ध्वनि प्रदूषण रोकने में सहयोग करें।
  • रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खादों, बर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जैविक कल्चर, कम्पोस्ट खाद एवं फलीदार फसलों को अपनायें।

विभागीय वेबसाइट http://www.uppcb.com/